देहरादून। आशुतोष महाराज जी द्वारा संचालित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान देहरादून शाखा के द्वारा रविवार 21 जुलाई को जानकी फार्म बडोवाला में देव दुर्लभ श्री गुरु पूर्णिमा महोत्सव राजधानी देहरादून में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का भव्य एवं विशाल आयोजन किया गया। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में उपस्थित होकर गुरुदेव आशुतोष महाराज जी के श्री चरणों में आरती व पूजन अर्पित किया।
संस्थान की देहरादून शाखा की संयोजिका साध्वी अरुणिमा भारती ने बताया कि बहुत समय पहले से ही संस्थान द्वारा इस महोत्सव की तैयारिया प्रारंभ हो गई थी और संस्थान द्वारा जुलाई माह में विश्व भर में इस उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर गुरु की पूजा, उनकी आराधना, उनके आदर्शों को शिष्यों के दिलों में एक बार फिर से उजागर किया गया सभी श्रद्धालुओं ने पूजनीय गुरुदेव आशुतोष महाराज के दिव्य गुरुप्रेम में पूर्णतरू भीगते हुए इस विशेष दिवस पर उन्हें अपने भाव अर्पण किये। इस अवसर पर आशुतोष महाराज जी की कृपापात्र शिष्या साध्वी विदुषी आस्था भारती जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि मैं उन गुरु के चरण कमलों की वंदना करता हूँ, जो कृपा सागर हैं जो सगुण रूप में धरा पर अवतरित हैं, इतना ही नहीं है, गुरु की पहचान बताते हुए कहते हैं कि पूर्ण गुरु वही है जो अपने शिष्य को ब्रह्मज्ञान की दीक्षा प्रदान करते समय तत्क्षण ईश्वर का दर्शन करा दे एक शिष्य के जीवन में गुरु के सिवा कुछ भी नहीं हैप् गुरु का स्थान एक शिष्य के जीवन में सर्वोपरि हुआ करता है। इसलिए शिष्य अपने गुरु की पूजा वंदना करता है। जीवन में पूर्ण गुरु की पूजा ही शिष्य के लिए सबसे बड़ा वरदान होती है। संस्थान के युवा, शिक्षित एवं योग्य संत समाज ने मधुर एवं भावपूर्ण भजनों द्वारा संगत को भक्ति से ओत प्रोत कर डाला।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण संस्थान के युवा स्वयंसेवकों द्वारा भगवान बुद्ध की आलौकिक एवं दिव्य लीलाओं पर आधारित एक दिव्य नृत्य नाटिका का मंचन किया गया जिसे देख सभी अचंभित एवं भाव विभोर हो उठे। इस कार्यक्रम में संस्थान के सामाजिक प्रकल्प ‘‘संरक्षण’’ के तहत, वृक्षारोपण जागरूकता अभियान का आयोजन भी हुआ, जिसमें लोगों ने वृक्षों के संरक्षण के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को निभाने की शपत ली। संस्थान की देहरादून शाखा की संयोजिका साध्वी अरुणिमा भारती ने इस विषय में बताया कि आज समाज की सभी समस्याओं का मूल कारणमानव की विकृत मनोवृत्ति है और पर्यावरण संकट का मूल भी इसी विकृति में स्थित हैद्य इसलिए मनोवृत्तियों से ऊपर उठ आत्मस्थित होने के पथ पर दृढ़ता से बढ़ने के इस संकल्प दिवस, यानि गुरु पूर्णिमा, पर यहवृक्षारोपण एक संकेत स्वरुप है क्योकि वृक्ष हमें, स्वयं को परिवर्तित करने, संघर्षरत रहने और विश्व के प्रति अपने दायित्व को निभाने की प्रेरणा देता है।
इस धार्मिक एवं दुर्लभ उत्सव के लिए सभी स्वयंसेवकों ने मन और प्रेम से अपनीनिस्वार्थ सेवाएं प्रदान की। स्वयंसेवकों के उत्साह के पीछे सतगुरु की प्रेरणा शक्ति है जो उन्हें अपने गुरुदेव के लक्ष्य में योगदान देने की खुशी अनुभव कराती है, जिसके कारण से वे विश्व शान्ति के महान लक्ष्य के लिए निरंतर कार्यरत हैं। गुरु पूर्णिमा महोत्सव उनके धैर्य और संकल्प को दृढ़ करता है जिसके पीछे सतगुरु का सौहार्दपूर्ण अनुग्रह है। मंच से प्रेरणादायक प्रवचन और संगीत रचनाएं श्रवण करते हुए, सभी शिष्यों ने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए अथक और निरंतर चलने की प्रतिज्ञा ली।