अल्मोड़ा। गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान 10 सितम्बर 2023 को अपनी स्थापना के 35 वर्ष पूर्ण कर रहा है। वर्ष 1988-89 में स्थापित यह प्रतिष्ठित संस्थान भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के शताब्दी वर्ष समारोह के दौरान अस्तित्व में आया। यह भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्वावधान में एक स्वायत्तशासी निकाय के रूप में कार्य करता है। संस्थान का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाना, एकीकृत प्रबंधन रणनीतियों को आकार देना और उनकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संस्थान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और विभिन्न भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय मुद्दों के विकास को बढ़ावा देता है। संस्थान ने प्रसार प्रोटोकॉल तैयार कर उनकी न्यूट्रास्यूटिकल और फार्मास्युटिकल क्षमता की खोज की है। हिमालयी झरनों के मानचित्रण और पुनर्जीवन के लिए महत्वाकांक्षी जल अभयारण्य कार्यक्रम के तहत संस्थान ने 11 हिमालयी राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापक ब्लॉक स्तरीय जल की कमी का मानचित्रण भी किया है। इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में स्थानिक प्रारूपों में 6124 झरनों की एक सूची भी बनाई है, और भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में 12 साइटों पर झरनों को पुनर्जीवित करने के लिए एक बहु संस्थागत पहल भी शुरू की है। संस्थान के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज (एनएमएचएस) ने जल सुरक्षा, आजीविका वृद्धि, अपशिष्ट से धन पहल, जंगल की आग प्रबंधन और वैकल्पिक निर्माण प्रौद्योगिकियों जैसे विविध डोमेनों में फैली कुल 182 अनुसंधान परियोजनाओं को मंजूरी दी है। पिछले कुछ वर्षों में संस्थान ने हिमालयी क्षेत्रों पर उच्च गुणवत्ता वाले लगभग 925 शोध पत्रों, जिनका इम्पेक्ट फैक्टर 1895 है, का प्रकाशन कर वैश्विक स्तर पर अपनी अनूठी पहचान बनाई है।
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान वर्तमान में प्रोफेसर सुनील नौटियाल के कुशल नेतृत्व में हिमालय के संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और विकेन्द्रीकृत रूप में सम्पूर्ण हिमालय के विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में अपने पांच क्षेत्रीय केंद्रों (गढ़वाल क्षेत्रीय केन्द्र, हिमाचल क्षेत्रीय केन्द्र, सिक्किम क्षेत्रीय केन्द्र, ईटानगर क्षेत्रीय केन्द्र और लद्दाख क्षेत्रीय केन्द्र) तथा चार थीमेटिक केंद्रों जिनकी अध्यक्षता ई. किरीट कुमार, डा. जे. सी. कुनियाल, डा. आई.डी. भट्ट तथा डा. पारोमिता घोष के नेतृत्व में होती है, हिमालय के सतत विकास शोध और विकास कार्यों में अपना सर्वोच्च देने हेतु सदैव प्रयासरत है।